ब्रिटिश सांसद बोले: अब तो फ़लस्तीन को “देश” बना ही दो!

Saima Siddiqui
Saima Siddiqui

ब्रिटेन के विदेश मामलों की संसदीय समिति ने एक नई रिपोर्ट के जरिए प्रधानमंत्री किएर स्टार्मर को सीधा संदेश भेजा है:
“अब देर मत करो, फ़लस्तीन को देश मान लो!”

सांसदों ने कहा कि फ़लस्तीन को संप्रभु राष्ट्र के रूप में मान्यता देना कोई कूपन कोड नहीं है कि ‘शर्तें लागू’ वाली लाइन जोड़ दी जाए। ये उनका अधिकार है—बिना किसी टी एंड सी के!

लेबर और लिबरल: “फ़लस्तीन को कब तक PENDING रखोगे?”

समिति में शामिल ज़्यादातर सांसद, जिनमें लेबर पार्टी और लिबरल डेमोक्रेट्स के सदस्य हैं, मानते हैं कि फ़लस्तीन की मान्यता को बार-बार टालना नैतिक और राजनीतिक दोनों स्तरों पर गलत है।

रिपोर्ट में ज़ोर दिया गया है कि अंतरराष्ट्रीय शांति के लिए “पालतू पॉलिसी नहीं, बोल्ड डिसीजन” चाहिए।

लेकिन टोरीज़ बोले: “भाई, पहले सुलह-सफाई करा लो!”

हालांकि समिति के दो कंज़र्वेटिव सांसदों ने कहा कि फ़लस्तीन को तब तक देश का दर्जा नहीं दिया जाना चाहिए जब तक कि मध्य पूर्व में कोई ठोस, दीर्घकालिक समाधान न निकल आए।

उनकी राय में फिलहाल ये वैसा ही होगा जैसे “डॉक्टर की बजाय पहले गिफ्ट रैपर बुला लेना!”

पीएम स्टार्मर की कुर्सी गर्म

किएर स्टार्मर पहले ही लेबर पार्टी के अंदर और बाहर से भारी दबाव में हैं। अब तो पार्टी के अंदर से ही आवाज़ें आ रही हैं—“इजरायल से रिश्ते निभाते-निभाते कहीं इंसानियत ना खो बैठो!”

फ्रांस ने कर दी डेट फाइनल

फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने गुरुवार को ऐलान किया कि सितंबर 2025 में उनका देश फ़लस्तीन को आधिकारिक मान्यता देगा। अब सवाल ये है कि ब्रिटेन कब तक “हम सोच रहे हैं” वाले मोड में रहेगा?

कई लोगों ने कहा:
“जब फ्रांस तक फाइनल कर चुका है, तो ब्रिटेन क्यों अब भी टेबल पर पेन ढूंढ रहा है?”

क्या फ़लस्तीन को देश माना जाएगा?

सवाल अब ये नहीं है कि क्या फ़लस्तीन को मान्यता दी जाएगी, सवाल ये है कि कब?
संसदीय समिति की ये रिपोर्ट बताती है कि ब्रिटिश राजनीति अब उस मोड़ पर पहुंच चुकी है जहां ‘status quo’ रखना ही सबसे बड़ा रिस्क बन चुका है।

विदेश नीति या Friend Zone?

फिलहाल ब्रिटेन की पोजीशन ऐसी लग रही है जैसे कोई Commitment Issues वाला पार्टनर—बातें बहुत करता है, लेकिन कदम नहीं उठाता।

और जनता पूछ रही है:
“कब तक फ़लस्तीन ‘Seen’ में रहेगा?”

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